आदिवासी ‘ग्रीन वॉरियर’ ने 400 एकड़ में उगाए जंगल

Source and Reported By Satish Paradhi Gondia
आदिवासी ‘ग्रीन वॉरियर’ ने 400 एकड़ में उगाए जंगल
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में आदिवासी किसान ने अपने गांव की 400 एकड़ जमीन को एक विशाल जंगल में तब्दील कर दिया. यह संरक्षण के लिए समुदाय आधारित दृष्टिकोण अपनाते हुए यह प्रयास किया गया था. वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आदिवासी किसान दामोदर कश्यप की पहल की सराहना की और कहा कि “उनके प्रयासों से न केवल संघ करमारी गांव में वनीकरण हुआ, बल्कि आसपास के गांवों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा. बकावंड ब्लॉक में उनके गांव संघ करमारी में जंगल एक अभयारण्य है, जिसे उन्होंने पूरे समुदाय को शामिल करके दशकों के निरंतर प्रयासों से विकसित किया है”
दामोदर का कहना है कि ‘जब मैं 1970 में जगदलपुर से 12वीं की पढ़ाई पूरी कर गांव लौटा तो यह देखकर हैरान रह गया, हमारे घर के पास के करीब 300 एकड़ जंगल को काफी नुकसान पहुंचा था.’ उन्होंने कहा कि जो कभी हरा-भरा जंगल हुआ करता था, वह अब चंद पेड़ों में सिमट कर रह गया है.
उन्होंने कहा कि स्थिति से परेशान दामोदर ने जंगल को पुनर्जीवित करने और गांव में हरियाली बहाल करने का फैसला किया. शुरुआत में ग्रामीणों को पेड़ काटने से रोकने के लिए राजी करना कठिन था, क्योंकि वे अपने दैनिक जीवन में उन पर निर्भर थे। लोग धीरे-धीरे जंगल के महत्व को समझने लगे.
साल 1977 में गांव के सरपंच चुने जाने के बाद दामोदर ने जंगल को पुनर्जीवित करने के लिए सभी प्रयास किए. उनके बेटे तिलक राम ने कहा कि अपने कार्यकाल के दौरान दामोदर ने सख्त नियम बनाए और जंगल के विनाश के लिए जुर्माना भी लगाया. उन्होंने कहा, “पंचायत ने ‘थेंगा पाली’ प्रणाली की शुरुआत की, जिसके तहत गांव के किन्हीं तीन लोगों को पेड़ों की अवैध कटाई को रोकने के लिए हर दिन गश्त और जंगल की रखवाली करने के लिए तैनात किया गया था.”
इसके अलावा दामोदर ने जंगल की रक्षा के लिए स्थानीय मान्यताओं और प्रथाओं का भी इस्तेमाल किया. तिलक राम ने कहा कि ग्राम देवता के ‘लाट’ (राजदंड) को गांव और जंगल में घुमाया गया ताकि लोगों को यह विश्वास दिलाया जा सके कि ये पवित्र स्थान हैं, जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है.
उन्होने कहा, “हमारे घर के पास 300 एकड़ के जंगल के अलावा, मेरे पिता ने ग्रामीणों की मदद से साल-दर-साल पौधे लगाकर मौलिकोट क्षेत्र में 100 एकड़ जमीन पर एक जंगल भी उगाया.”
उन्होने कहा, “हमारे घर के पास 300 एकड़ के जंगल के अलावा, मेरे पिता ने ग्रामीणों की मदद से साल-दर-साल पौधे लगाकर मौलिकोट क्षेत्र में 100 एकड़ जमीन पर एक जंगल भी उगाया.”
कठिन परिस्थितियों में सामुदायिक एकजुटता के लिए महत्वपूर्ण और स्थायी परिवर्तन लाने के लिए दामोदर को 2014 में पॉल के फेयरबेंड फाउंडेशन पुरस्कार मिला. संरक्षण के क्षेत्र में 70 साल की उम्र के इस व्यक्ति के काम ने उन्हें छत्तीसगढ़ बोर्ड की कक्षा 9 की सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में एक अध्याय भी दिलाया.
तिलक राम ने कहा, “वर्तमान में, मेरे पिता विभिन्न किस्मों के पौधे उगाने के लिए नर्सरी स्थापित करने के लिए 10 एकड़ भूमि का उपयोग कर रहे हैं.”
स्थानीय निवासी पारितोष मंडल ने कहा कि दामोदर के प्रयास से करमारी गांव के लोग जंगल बचाने के लिए प्रेरित हुए. हम जंगल में बहुत शांति महसूस करते हैं. हरित आवरण ने वर्तमान चरम गर्मी के समय में भी यहाँ की जलवायु को ठंडा रखा है.
बस्तर के मुख्य वन संरक्षक शाहिद खान ने कहा कि जब वह बस्तर के संभागीय वन अधिकारी (DFO) थे, तो उन्होंने करमारी गांव के निवासियों द्वारा किए जा रहे वन संरक्षण प्रयासों के बारे में सुना. उन्होंने कहा कि मैं जंगल देखने गया था और दामोदर कश्यप के नेतृत्व में ग्रामीणों द्वारा किए गए वनीकरण को देखकर बहुत खुशी हुई. उन्होंने सामूहिक रूप से 400 एकड़ भूमि को कवर करते हुए एक हरे-भरे जंगल का निर्माण किया. करमारी में ग्रामीणों द्वारा किए गए वनीकरण कार्य का आसपास के गांवों पर भी बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा. मैं इस खूबसूरत जंगल को देखकर रोमांचित हो गया.