चम्पावत नैसर्गिक, धार्मिक और एतिहासिकता की त्रिवेणी है

जनजातीय समाचार नेटवर्क उत्तराखंड राज्य प्रमुख की रिपोर्ट
चम्पावत : कुमाऊं की उत्पत्ति का शहर और चंदों की राजधानी रही चम्पावत नैसर्गिक, धार्मिक और एतिहासिकता की त्रिवेणी है। खूबसूरती में यहा की वादिया स्वीटजरलैंड को मात देती हैं। धर्म और आस्था के द्वार उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिपीठ मा पूर्णागिरि धाम से ही खुल जाते हैं। जैसे ही मैदान से पहाड़ का सफर शुरू होता हैं। प्राकृतिक सौंदर्य, घने जंगल, सर्पीली सड़कें, घाटियों के बीच बहती नदिया मंत्रमुग्ध कर देती हैं। श्यामलाताल झील का आर्कषण, चम्पावत का नजारा, एपटमाउंट, मंच, बापरु से हिमालय दर्शन मन को प्रफुल्लित कर देता है। कुमाऊं के आराध्य देव न्यायकारी गोलज्यू का दरबार असहाय, पीड़ित और सताये लोगों का सबसे बडा आसरा हैं। राजबुंगा, बाणासुर किला, ब्यानधूरा, दूनकोट, घटोतकच्छ, मानेश्वर, बालेश्वर के बिरखम यहा की एतिहासिकता की खुली किताब हैं। मायावती आश्रम जहा अद्वैतवाद की गंगोत्री है। वहीं सिखों का तीर्थस्थल रीठा साहिब नानक जी के चमत्कार का गवाह है। तल्लादेश के गुरु गोरखनाथ धाम में सतयुग से अनवरत जल रही धूनी संत परंपरा की लौ को दीप्तीमान कर रही हैं। देवीधूरा का मा बाराही दरबार आस्था, शक्ति और अदभुत परंपरा का द्योतक है।
इतिहास : कुमाऊं के इतिहास में चम्पावत का विशिष्ट स्थान रहा है। गुरुपादुका नामक ग्रन्थ के अनुसार नागों की बहन चम्पावती ने चम्पावत के बालेश्वर मन्दिर के पास तपस्या की थी। उसकी स्मृति में चम्पावती का मन्दिर आज भी बालेश्वर मन्दिर समूह के अंदर स्थित है। वायु पुराण के अनुसार चम्पावती पुरी नागवंशीय नौ राजाओं की राजधानी थी। ७०० ई॰ में बद्रीनाथ की यात्रा पर आये झूसी के चन्द्रवंशी राजपूत सोमचन्द ने स्थानीय राजा ब्रह्मदेव की एकमात्र कन्या ‘चम्पा’ से विवाह कर इस स्थान को दहेज में प्राप्त किया। अपना राज्य स्थापित कर उन्होंने अपनी रानी के नाम पर ही चम्पावती नदी के तट पर चम्पावत नगर की स्थापना की, और उसके मध्य में ‘राजबुंगा’ नामक किला बनवाया।
राजा सोमचन्द के बाद उनके पुत्र आत्मचन्द, चन्द वंश के उत्तराधिकारी बने। पश्चात क्रमशः संसार चन्द, हमीर चन्द, वीणा चन्द आदि ने चम्पावत की राजगद्दी संभाली। सोलहवीं शताब्दी आते आते राजा भीष्म चन्द ने राजधानी राज्य के मध्य किसी केन्द्रीय स्थान पर ले जाने का निर्णय किया। भीष्म चन्द के बाद उनके पुत्र बालो कल्याण चन्द ने अपने पिता की इच्छानुसार सन् १५६३ में अपने राज्य का विस्तार करते हुये राजधानी अल्मोड़ा में स्थानान्तरित कर दी। चम्पावत में चन्द राजाओं का राज्यकाल ८६९ वर्षों तक रहा। चन्द काल के समय चम्पावत और कूर्मांचल (काली कुमाऊं) में लगभग दो-तीन सौ घर थे।
ब्रिटिश शासन काल में १८७२ में पौड़ी के साथ-साथ चम्पावत को तहसील का दर्जा दिया गया। तहसील बनने के बाद अंग्रेज अधिकारियों केे इस क्षेत्र में आशियाने बनने लगे। अल्मोड़ा जनपद की इस सीमान्त तहसील को १९७२ में पिथौरागढ़ जनपद में शामिल कर दिया गया। छोटी प्रशासनिक इकाइयों को विकास में सहायक मानने, तथा दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री, मायावती ने १५ सितम्बर १९९७ को चम्पावत को जनपद का दर्जा दे दिया। इस जनपद में पिथौरागढ़ जनपद की चम्पावत तहसील के अतिरिक्त उधमसिंहनगर जनपद की खटीमा तहसील के ३५ राजस्व ग्रामों को भी सम्मिलित किया गया था।
मुख्य आकर्षण
बालेश्वर मंदिर : यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण चन्द शासन काल में करवाया गया था। इस मंदिर की वास्तुकला बहुत सुन्दर है। ऐसा माना जाता है कि बालेश्वर मंदिर का निर्माण १०-१२ ईसवीं शताब्दी में हुआ था।
नागनाथ मंदिर : इस मंदिर में की गई वास्तुकला बहुत सुन्दर है। यह कुमाऊँ के पुराने मंदिरों में से एक है।
मीठा-रीठा साहिब : यह सिक्खों के प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक है। यह स्थान चम्पावत से ७२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि सिक्खों के प्रथम गुरू, गुरू नानक जी यहां पर आए थे। यह गुरूद्वारा जहां पर स्थित है वहां लोदिया और रतिया नदियों का संगम होता है। गुरूद्वार परिसर पर रीठे के कई वृक्ष लगे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरू के स्पर्श से रीठा मीठा हो जाता है। गुरूद्वारा के साथ
पूर्णागिरी मंदिर : यह पवित्र मंदिर पूर्णागिरी पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर तंकपुर से २० किलोमीटर तथा चम्पावत से ९२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पूरे देश से काफी संख्या में भक्तगण इस मंदिर में आते हैं। इस मंदिर में सबसे अधिक भीड़ चैत्र नवरात्रों (मार्च-अप्रैल) में होती है। यहां से काली नदी भी प्रवाहित होती है जिसे शारदा के नाम से जाना जाता है।
श्यामलाताल : यह जगह चम्पावत से ५६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके साथ ही यह स्थान स्वामी विवेकानन्द आश्रम के लिए भी प्रसिद्ध है जो कि खूबसूरत श्यामातल झील के तट पर स्थित है। इस झील का पानी नीले रंग का है। यह झील १.५ वर्ग किलोमीटर तक फैली हुई है। इसके अलावा यहां लगने वाला झूला मेला भी काफी प्रसिद्ध है
पंचेश्वर : यह स्थान नेपाल सीमा पर स्थित है। इस जगह पर काली और सरयू नदियां आपस में मिलती है। पंचेश्वर भगवान शिव के मंदिर के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। काफी संख्या में भक्तगण यहां लगने वाले मेलों के दौरान आते हैं, और इन नदियों में डुबकी लगाते हैं।
देवीधुरा : यह जगह चम्पावत से ४५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह खूबसूरत जगह वराही मंदिर के नाम से जानी जाती है। यहां बगवाल के अवसर पर दो समूह आपस में एक दूसरे पर पत्थर फेकते हैं। यह अनोखी परम्परा रक्षा बन्धन के अवसर की जाती है।
लोहाघाट : यह ऐतिहासिक शहर चम्पावत से १४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान लोहावती नदी के तट पर स्थित है। यह जगह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह स्थान गर्मियों के दौरान यहां लगने वाले बुरास के फूलों के लिए भी प्रसिद्ध है, प्रसिद्द टी.वी. अस्पताल मायावती यही पर है।
एबट माउंट : एबट माउंट बहुत ही खूबसूरत जगह है। इस स्थान पर ब्रिटिश काल के कई बंगले मौजूद है। यह खूबसूरत जगह लोहाघाट से ११ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा यह जगह २००१ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
बनबसा : यह नेपाल बोर्डर {महेंद्र नगर} पर स्थित है, एन.एच.पी.सी का जलविद्युत पावर स्टेशन यहाँ पर है, यहाँ पर सेना की छावनी भी है। यहाँ पर एक फार्म हॉउस है जिसका नाम स्ट्रोंग फार्म हॉउस है । जिसके की मालिक एक ब्रिटिश नागरिक हैं । यहाँ पर स्कूल एवं अनाथालय चलाते हे।