मयूरभंज जिला में कुडमी संप्रदाय एवं आदिवासी संप्रदाय का मुख्य पर्व बांदणा पर्व के रूप में जाना जाता है

आदिवासी जनजातीय न्यूज नेटवर्क रिपोर्टर अजय
मयूरभंज जिला में कुडमी संप्रदाय एवं आदिवासी संप्रदाय का मुख्य पर्व बांदणा पर्व के रूप में जाना जाता है । इस त्यौहार में गौ माता के सेवा के साथ उनके पूजन कार्य की परंपरा चली आ रही है । कृषि कार्य में गौ माता की अतुलनीय योगदान के कारण 3 दिन लोग उनके सेवा करने के साथ पूजा अर्चना करते हैं इसके साथ ही 3 दिन तक गाय बैलों को कोई भी कार्य में नहीं लगाया जाता है
तीन दिवसीय इस त्यौहार में प्रथम दिवस को गोट पूजा का कहा जाता है इस कार्यक्रम में गांव समीप एक मैदान के बीचो बीच एक अंडा रखा जाता है एवं विधिवत रूप से पूजा अर्चना की जाती इसके पश्चात गांव के सभी गाय बैलों को उस मैदान में छोड़ा जाता है जिस गाय के पांव से वह अंडा फूटता है उस गाय के मालिक को बहुत भाग्यशाली समझा जाता है एवं गांव के सभी लोग उसके घर में शाम का भोजन करने का परंपरा रही है इसके अलावा द्वितीय दिन को गुहाल पूजा कहा जाता है इसके तहत गाय के सींग पर तेल लगाया जाता है तथा माथे पर ध्यान से बुना हुआ माला लगाया जाता है एवं गाय बैलों को पूजा जाता है तीसरे दिन को गो खुन्टा पर्व या बूढ़ी बांदणा पर्व कहा जाता है ।
इस कार्यक्रम में गांव के समीप बड़े मैदान में खंबे गाड़ कर उस पर गाय बैलों को बांध दिया जाता है और उसके समीप ढोल तथा मादल बजाने के साथ आतिशबाजी की जाती है इसका उद्देश्य गाय बहनों के अंदर बैठे डर को समाप्त करना तथा सामान्य रूप से खेती कार्य में किसान का सहायता करना कहा जाता है।
तीन दिवसीय इस प्रसिद्ध ऐतिहासिक त्यौहार को मयूरभंज जिले के हर संप्रदाय के लोग खुशियां मनाते हुए कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं